अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट और ट्रम्प प्रशासन की बढ़ती नज़दीकियाँ

 

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले और ट्रम्प प्रशासन को मिलता बढ़ता सहारा

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले और ट्रम्प प्रशासन को मिलता बढ़ता सहारा

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट हाल ही में ऐसे आपात आदेश जारी कर रही है, जो ट्रम्प प्रशासन को सीधा फायदा पहुँचा रहे हैं। ये आदेश निचली अदालतों के फैसलों को दरकिनार करते हैं और “शैडो डॉकेट” के तहत जारी होते हैं। इसमें न तो खुली सुनवाई होती है और न ही विस्तृत स्पष्टीकरण। यही कारण है कि न्यायपालिका की पारदर्शिता पर अब गंभीर सवाल उठ रहे हैं।


NIH अनुदान पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने NIH (नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ हेल्थ) से जुड़े लगभग 780 से 783 मिलियन डॉलर के अनुदान पर रोक हटा दी। ये अनुदान DEI (डायवर्सिटी, इक्विटी, इनक्लूज़न) पहल के तहत जारी हुए थे। ट्रम्प प्रशासन ने इन्हें रोकने की कोशिश की थी, लेकिन निचली अदालत ने उस रोक को अमान्य कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 5-4 के फैसले में इस रोक को पलट दिया।

मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स और तीन उदारवादी न्यायाधीश इससे असहमत रहे। उनका कहना था कि इतना बड़ा फैसला बिना गहन सुनवाई और विचार के नहीं होना चाहिए। वहीं, ट्रम्प समर्थक न्यायाधीशों ने इसे प्रशासनिक अधिकार का हिस्सा बताया।


अन्य आदेशों से बढ़ी बहस

NIH अनुदानों के अलावा अदालत ने कई और फैसले ट्रम्प प्रशासन के पक्ष में दिए। इसमें संघीय एजेंसियों के प्रमुखों को हटाना और सरकारी कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी शामिल रही। निचली अदालतों ने जिन फैसलों पर रोक लगाई थी, उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने उलट दिया।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रवृत्ति परंपरागत न्यायिक प्रक्रिया से अलग है। आमतौर पर गंभीर मुद्दों पर सुनवाई और बहस जरूरी होती है। लेकिन शैडो डॉकेट के आदेशों में इन प्रक्रियाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।


पारदर्शिता पर मंडराता संकट

विशेषज्ञ मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह तरीका न्यायपालिका की पारदर्शिता को नुकसान पहुँचा रहा है। आपात आदेश अक्सर बिना स्पष्टीकरण आते हैं और बहस भी नहीं होती। इससे जनता के मन में यह सवाल गहरा हो रहा है कि अदालत स्वतंत्र है या दबाव में।

Vox और AP News ने चेताया है कि अगर यह स्थिति जारी रही, तो जनता का भरोसा कमजोर हो सकता है।


कानून की सर्वोच्चता पर चिंता

लोकतंत्र की नींव कानून की सर्वोच्चता पर टिकी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले यह संकेत देते हैं कि अदालत ट्रम्प प्रशासन की ओर झुक रही है। इससे न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है, बल्कि लोकतंत्र की संस्थाओं पर भी संकट गहराने लगा है।

The Guardian और अन्य रिपोर्ट्स ने जोर दिया है कि अदालत को हमेशा प्रशासनिक दबाव से ऊपर रहकर फैसला करना चाहिए। अगर अदालतें राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बन गईं, तो लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर हो सकती है।

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