मध्यप्रदेश की नदियाँ भारत की सनातन संस्कृति की संवाहक : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव

‘मध्यप्रदेश है नदियों का मायका’

भोपाल, सोमवार, 18 अगस्त 2025।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि भारत का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश, अपनी अप्रतिम प्राकृतिक संपदा, जल-संपदा और सांस्कृतिक धरोहरों के कारण देश ही नहीं, पूरे विश्व में पहचाना जाता है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश की नदियाँ केवल जलधारा नहीं हैं, बल्कि भारत की सनातन संस्कृति की संवाहक और सभ्यता की धुरी हैं। इन्हीं नदियों के किनारे हजारों वर्षों से नगर, धार्मिक स्थल, व्यापार मार्ग और सांस्कृतिक केंद्र विकसित हुए हैं। मुख्यमंत्री ने यह विचार सोमवार को राजधानी भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।



नदियों को ‘मध्यप्रदेश का मायका’ बताया

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रदेश में लगभग 750 से 800 नदियाँ बहती हैं। इन नदियों के कारण ही मध्यप्रदेश को ‘नदियों का मायका’ कहा जाता है। प्रदेश से निकलने वाली छोटी-बड़ी नदियाँ गंगा, नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी, माही और महानदी जैसे विशाल नदी तंत्रों में समाहित होकर पूरे देश की जीवन रेखा बनाती हैं।


उन्होंने कहा कि इन नदियों के किनारे बसे नगर, तीर्थ और धरोहर आज भी हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को संरक्षित कर रहे हैं। उज्जैन की क्षिप्रा, ओंकारेश्वर और महेश्वर की नर्मदा, ओरछा की बेतवा और विदिशा-सांची जैसे नगरों का विकास इन्हीं नदियों के तटों पर हुआ है।


नदियों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

मुख्यमंत्री ने कहा कि क्षिप्रा नदी के तट पर बसा उज्जैन प्राचीन काल से खगोल विज्ञान और धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां सिंहस्थ कुंभ का आयोजन भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। इसी प्रकार नर्मदा नदी के किनारे महेश्वर और ओंकारेश्वर जैसे नगर शैव परंपरा के महत्वपूर्ण तीर्थ हैं।


बेतवा नदी के किनारे ओरछा, सांची और विदिशा जैसे नगर मध्यकालीन सांस्कृतिक वैभव और बौद्ध धरोहरों के साक्षी हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि इन नदियों ने न केवल जीवनदायिनी भूमिका निभाई है, बल्कि सांस्कृतिक निरंतरता को भी बनाए रखा है।


नर्मदा को शिव की पुत्री माना गया

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने विशेष रूप से मां नर्मदा का उल्लेख करते हुए कहा कि पुण्यसलिला नर्मदा का दूसरा नाम रेवा है। मान्यता है कि मां नर्मदा भगवान शिव की पुत्री हैं। नर्मदा को मध्यप्रदेश और गुजरात दोनों की जीवन रेखा माना गया है। श्रद्धालुओं के लिए नर्मदा परिक्रमा सबसे बड़ा तप मानी जाती है। यह परिक्रमा लगभग 3000 किलोमीटर लंबी होती है।


नर्मदा अमरकंटक से निकलकर जबलपुर में धुआंधार जलप्रपात का रूप धारण करती है और आगे बढ़ते हुए गुजरात में खंभात की खाड़ी में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई लगभग 1312 किलोमीटर है।




चंबल, बेतवा, क्षिप्रा और सोन का महत्व

मुख्यमंत्री ने चंबल नदी का उल्लेख करते हुए कहा कि महाभारत काल में इसे चर्मणवती कहा जाता था। यह नदी मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के पास स्थित जानापाव से निकलती है और आगे बढ़ते हुए यमुना नदी में मिलती है।


बेतवा नदी, जिसे वेत्रवती भी कहा जाता है, को ‘मध्यप्रदेश की गंगा’ कहा जाता है। इसके तट पर ऐतिहासिक ओरछा बसा है। यह विंध्यांचल पर्वत से निकलकर लगभग 590 किलोमीटर की यात्रा कर यमुना नदी में मिलती है।


क्षिप्रा नदी को मालवा की गंगा कहा जाता है। उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग और सिंहस्थ कुंभ मेले के कारण यह नदी धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह लगभग 195 किलोमीटर की यात्रा के बाद चंबल नदी में मिल जाती है।


सोन नदी का उल्लेख रामायण और महाभारत दोनों में मिलता है। इसे ‘नद’ कहा गया है। महर्षि वाल्मीकि ने इसे सुभद्र नाम से पुकारा है। यह रीवा और शहडोल से बहते हुए गंगा नदी में मिलती है।


ताप्ती, माही और अन्य नदियाँ

सतपुड़ा की पहाड़ियों से निकलने वाली ताप्ती नदी लगभग 724 किलोमीटर बहकर खंभात की खाड़ी में मिल जाती है। माही नदी कर्क रेखा को दो बार पार करती है। यह मध्यप्रदेश से निकलकर गुजरात पहुंचती है और लगभग 583 किलोमीटर की यात्रा कर खंभात की खाड़ी में समाहित होती है।


मुख्यमंत्री ने कहा कि वैनगंगा, तवा, कालीसिंध, पार्वती, केन, शक्कर और जोहिला जैसी नदियाँ भी प्रदेश की कृषि, सिंचाई और वन्य जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।


सिंचाई और ऊर्जा परियोजनाएँ

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि नदियों पर बने बाँध और परियोजनाएँ प्रदेश की कृषि और ऊर्जा आपूर्ति की रीढ़ हैं। गांधीसागर परियोजना चंबल पर, तवा परियोजना नर्मदा की सहायक नदी तवा पर, ओंकारेश्वर और बरगी परियोजनाएँ नर्मदा पर तथा बाणसागर परियोजना सोन नदी पर बनी हैं।


उन्होंने कहा कि केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए, जबकि चंबल-पार्वती-कालीसिंध लिंक परियोजना मध्यप्रदेश और राजस्थान के लिए लाभकारी है। ताप्ती बेसिन मेगा रिचार्ज परियोजना भी जल संकट समाधान के लिए बनाई गई है।


मुख्यमंत्री ने कहा कि इन परियोजनाओं से लाखों हेक्टेयर भूमि सिंचित हो रही है और बिजली उत्पादन भी हो रहा है।




भौगोलिक विविधता और नदियों की उत्पत्ति

प्रदेश का अधिकांश भूभाग विंध्य और सतपुड़ा की पहाड़ियों से आच्छादित है। यही कारण है कि यहां से अनेक नदियाँ उद्गमित होती हैं। नर्मदा और ताप्ती पश्चिम की ओर बहती हैं, जबकि सोन, क्षिप्रा, चंबल और बेतवा उत्तर-पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हैं।


मुख्यमंत्री ने कहा कि इसी भौगोलिक विविधता के कारण मध्यप्रदेश को नदी-संपन्न राज्य की उपाधि प्राप्त है।


मुख्यमंत्री के अनुसार नदियाँ केवल जल स्रोत ही नहीं, बल्कि सभ्यता और संस्कृति का आधार हैं। उनके किनारे बसे नगर आज भी ऐतिहासिक धरोहरों और परंपराओं के जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

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