चुनाव आयोग ने जारी की 65 लाख मतदाताओं की सूची, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कदम तेज़

पटना/नई दिल्ली।

चुनाव आयोग (ECI) ने रविवार को बिहार की विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया के अंतर्गत तैयार ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम सार्वजनिक कर दिए। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उठाया गया, जिसमें आयोग को पारदर्शिता बरतते हुए हटाए गए मतदाताओं की पूरी सूची कारण सहित प्रकाशित करने का आदेश दिया गया था।

आयोग ने यह सूची राज्य निर्वाचन पदाधिकारी (CEO, Bihar) और सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइट पर अपलोड की है। इसके साथ ही बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) को भी सूची का स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन करने का निर्देश दिया गया है ताकि कोई भी मतदाता अपने नाम को लेकर जानकारी प्राप्त कर सके।


चुनाव आयोग ने जारी की 65 लाख मतदाताओं की सूची, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कदम तेज़

 

पृष्ठभूमि : SIR प्रक्रिया और विवाद की शुरुआत

बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले चुनाव आयोग ने राज्य में विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया शुरू की थी। इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना, मृत, स्थानांतरित या डुप्लिकेट नाम हटाना और नए पात्र मतदाताओं को शामिल करना है।

प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 7.89 करोड़ थी।

ड्राफ्ट लिस्ट प्रकाशित होने पर यह संख्या घटकर 7.24 करोड़ रह गई।

यानी करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम सूची से बाहर कर दिए गए।


इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने पर विपक्षी दलों ने गंभीर सवाल खड़े किए। कांग्रेस और राजद सहित कई नेताओं ने इसे मताधिकार छीनने की साजिश बताते हुए चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा किया।

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सुप्रीम कोर्ट की दखल और आदेश

मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। आदर्श चुनाव सुधार संगठन (ADR) ने जनहित याचिका दाखिल कर यह मांग की कि आयोग स्पष्ट करे कि किन आधारों पर इतने बड़े पैमाने पर नाम काटे गए हैं।

14 अगस्त 2025 को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि—

1. हटाए गए मतदाताओं की पूरी सूची जिला और बूथवार सार्वजनिक की जाए।

2. हर नाम के हटने का कारण दर्ज और सार्वजनिक किया जाए।

3. प्रभावित मतदाता ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यम से अपने नाम की स्थिति जांच सकें।

4. सूची को डिजिटल खोजने योग्य प्रारूप (searchable format) में उपलब्ध कराया जाए।

5. मतदाता आधार कार्ड, EPIC या अन्य मान्य दस्तावेज़ देकर पुनः दावा/आपत्ति दर्ज कर सकें।


सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पारदर्शिता लोकतंत्र की आत्मा है, और यदि मतदाताओं की इतनी बड़ी संख्या में कटौती हुई है तो इसकी पूरी जानकारी सार्वजनिक होना आवश्यक है।

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चुनाव आयोग की कार्रवाई : 56 घंटे में सूची जारी

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के 56 घंटे के भीतर ही चुनाव आयोग ने बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी (CEO) के माध्यम से यह सूची जारी कर दी।

सूची में लगभग 65 लाख हटाए गए मतदाताओं के नाम, पिता/पति का नाम, पता और हटाए जाने का कारण दर्ज किया गया है।

हटाने के कारणों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है –

1. Absent (अनुपस्थित)

2. Shifted (स्थानांतरित)

3. Dead (मृत)


CEO कार्यालय और जिला निर्वाचन कार्यालयों की वेबसाइट पर इसे अपलोड किया गया।

BLOs को यह निर्देश दिया गया है कि वे अपने-अपने बूथ पर इस सूची का सार्वजनिक प्रदर्शन करें।

आयोग का कहना है कि इस सूची को लेकर कोई भी व्यक्ति 1 सितंबर 2025 तक दावा और आपत्ति दर्ज करा सकता है।

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राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ


कांग्रेस का आरोप

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस पूरी प्रक्रिया को “vote chori” करार दिया। उनका कहना है कि जानबूझकर लाखों मतदाताओं को सूची से हटाया गया है ताकि चुनावी गणित बदला जा सके। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल के दबाव में काम कर रहा है।


आयोग का जवाब

चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को सिरे से खारिज किया। आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया पूरी तरह नियमसम्मत है और प्रत्येक हटाए गए नाम का कारण रिकॉर्ड में है। साथ ही आयोग ने राहुल गांधी से कहा कि वे अपने आरोपों के समर्थन में शपथ पत्र दें या फिर सार्वजनिक रूप से माफी माँगें।


दिग्विजय सिंह की मांग

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि यदि चुनाव आयोग को लगता है कि इसमें कोई गड़बड़ी नहीं है तो सूची को पूरी तरह सार्वजनिक करना चाहिए। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और मतदाताओं का भरोसा मजबूत होगा।


विपक्षी गठबंधन की प्रतिक्रिया

विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत किया और इसे लोकतंत्र की जीत बताया। उनका कहना है कि यदि यह आदेश नहीं आता तो लाखों लोग अपने मताधिकार से वंचित हो जाते।

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विवाद : ‘हाउस नंबर 0’ और तकनीकी गड़बड़ियाँ

सूची में कई जगह मतदाताओं का हाउस नंबर ‘0’ दर्ज मिला। इस पर विपक्ष ने सवाल उठाया कि यह तकनीकी त्रुटि है या जानबूझकर मतदाताओं की पहचान गुमराह करने की कोशिश।


चुनाव आयोग ने सफाई दी कि यह मानक प्रक्रिया है। जहां मकान का नंबर उपलब्ध नहीं होता, वहां ‘0’ अंकित कर दिया जाता है। आयोग का कहना है कि इससे मतदाता की पहचान पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

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प्रभावित मतदाताओं के लिए क्या विकल्प?


चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि :

# जिनका नाम ड्राफ्ट लिस्ट से हटा है, वे Form-6 भरकर पुनः नाम जुड़वा सकते हैं।

# आपत्ति दर्ज कराने के लिए Form-7 का उपयोग करना होगा।

# पते में बदलाव के लिए Form-8 लागू होगा।

# इन सभी फॉर्म को 1 सितंबर 2025 तक जमा कराया जा सकता है।


सुनवाई के बाद अंतिम मतदाता सूची अक्टूबर 2025 में प्रकाशित होगी।

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विशेषज्ञों की राय


चुनाव सुधार विशेषज्ञों का मानना है कि—


इतने बड़े पैमाने पर नाम हटाना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए चिंता का विषय है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश और आयोग की पारदर्शिता से मतदाताओं को राहत मिलेगी।

अब यह देखना होगा कि कितने प्रभावित लोग दोबारा दावा कर पाते हैं और कितने वास्तव में वंचित रह जाते हैं।

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समग्र विश्लेषण


1. लोकतांत्रिक पारदर्शिता : सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने यह सुनिश्चित किया कि आयोग को पारदर्शिता बरतनी ही होगी।

2. राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप : विपक्ष इसे सत्ता पक्ष की चाल बताता है, जबकि आयोग इसे तकनीकी प्रक्रिया मानता है।

3. मतदाताओं की भागीदारी : अंतिम फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रभावित मतदाता कितनी संख्या में दोबारा दावा कर पाते हैं।

4. समयसीमा महत्वपूर्ण : 1 सितंबर तक दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया पूरी करनी होगी, जो व्यावहारिक रूप से बड़ी चुनौती है।

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बिहार की ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से 65 लाख नाम हटाए जाने ने एक बड़ा राजनीतिक और संवैधानिक विवाद खड़ा कर दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप और चुनाव आयोग की त्वरित कार्रवाई से स्थिति कुछ हद तक स्पष्ट हुई है। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में मतदाता कितनी सक्रियता से अपने अधिकार का दावा करते हैं और आयोग कितनी निष्पक्षता से इन दावों का निपटारा करता है।


लोकतंत्र की बुनियाद मताधिकार है, और यह पूरा घटनाक्रम इस बात का सबूत है कि पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना चुनाव प्रक्रिया पर भरोसा कायम नहीं रह सकता।

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