न मांग पूरी करना आसान, न इंकार करना सुरक्षित” – बिहार चुनाव में एनडीए की पेचीदा चुनौती

 

न मांग पूरी करना आसान, न इंकार करना सुरक्षित” – बिहार चुनाव में एनडीए की पेचीदा चुनौती

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का माहौल धीरे-धीरे गरमाता जा रहा है और इसके साथ ही नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) के भीतर सीट शेयरिंग का मुद्दा बड़ा सिरदर्द बनता दिखाई दे रहा है।

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने 40 सीटों की डिमांड रखकर भाजपा और जनता दल (यू) के बीच संतुलन को झकझोर दिया है।
यह मांग न केवल गठबंधन की एकजुटता के लिए चुनौती है बल्कि विपक्ष के लिए अवसर भी खोल रही है।

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि चिराग पासवान की मांग क्यों पेचीदा है, यह एनडीए की रणनीति को किस तरह प्रभावित कर रही है, और भविष्य में इसके क्या परिणाम हो सकते हैं।


बिहार चुनाव 2025: एनडीए के लिए सीट बंटवारे की परीक्षा

बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार 243 सीटें दांव पर होंगी। एनडीए के प्रमुख घटक दल—भाजपा और जेडीयू—लगभग बराबर सीटों पर लड़ने को तैयार हैं। सूत्रों के मुताबिक, दोनों दलों के बीच लगभग 100–105 सीटों का बंटवारा तय हो चुका है।
लेकिन चिराग पासवान ने अपनी पार्टी के लिए 40 सीटों की मांग करके इस समीकरण को अस्थिर बना दिया है।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि एनडीए के लिए इस मांग को पूरा करना असंभव है, क्योंकि इससे छोटे सहयोगी दलों की हिस्सेदारी प्रभावित होगी। वहीं, चिराग पासवान को नजरअंदाज करना भी भाजपा और जेडीयू के लिए जोखिम भरा कदम साबित हो सकता है।


अन्य सहयोगियों का दबाव और समीकरण

एनडीए के अन्य सहयोगियों में जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (HAM) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) भी शामिल हैं। ये दोनों दल भी अपनी-अपनी राजनीतिक हैसियत के अनुसार सीटें चाहते हैं।

ऐसे में चिराग पासवान को 40 सीटें देना लगभग असंभव हो जाता है।
सूत्रों का मानना है कि चिराग को 20 से 25 सीटें मिल सकती हैं। इससे कम पर चिराग असंतुष्ट हो सकते हैं और अधिक पर अन्य सहयोगी दल नाराज हो सकते हैं।


दलित राजनीति और चिराग की ताकत

चिराग पासवान को नजरअंदाज करना आसान नहीं है।
दलित वोट बैंक पर उनकी पार्टी का महत्वपूर्ण असर है और बिहार की राजनीति में दलित समीकरण हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाता रहा है।
यही कारण है कि भाजपा और जेडीयू दोनों उन्हें साधने में जुटे हैं।

लेकिन समस्या यह है कि यदि चिराग की मांग पूरी की जाती है तो छोटे सहयोगी दलों का मनोबल गिर सकता है। इससे गठबंधन में असंतोष की लहर दौड़ सकती है।


भाजपा और जेडीयू की दुविधा

भाजपा और जेडीयू इस बार भी बराबरी पर सीटें बांटना चाहते हैं।
उनका मानना है कि बराबरी से चुनाव लड़ना ही गठबंधन की ताकत को दर्शाएगा और दोनों दल अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में मजबूती से चुनाव लड़ सकेंगे।

लेकिन चिराग पासवान की डिमांड ने इस योजना को चुनौती दी है।
यदि भाजपा चिराग की बात मानती है तो जेडीयू पर दबाव बढ़ेगा।
और यदि जेडीयू पीछे हटता है, तो नीतीश कुमार के समर्थक इसे उनकी कमजोरी मान सकते हैं।


भविष्य की रणनीति और खतरे

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि चिराग पासवान को उनकी डिमांड के मुताबिक सीटें नहीं मिलतीं, तो इसका फायदा विपक्ष—खासकर महागठबंधन (RJD, कांग्रेस और वाम दल)—को मिल सकता है।

महागठबंधन पहले से ही एनडीए के अंदरूनी विवादों पर नजर गड़ाए बैठा है।
यदि चिराग असंतुष्ट हुए तो उनकी नाराजगी का सीधा असर चुनावी नतीजों पर पड़ेगा।

दूसरी तरफ, अगर एनडीए उनकी मांग पूरी करता है तो छोटे सहयोगियों के असंतोष का खतरा मंडराएगा।
ऐसे में एनडीए की एकजुटता को बचाए रखना भाजपा और जेडीयू दोनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है।


चिराग पासवान का राजनीतिक महत्व

चिराग पासवान की राजनीतिक यात्रा उन्हें बिहार की राजनीति में एक अहम खिलाड़ी बनाती है।
रामविलास पासवान की विरासत संभालने के बाद से ही चिराग ने खुद को एक दमदार नेता के रूप में स्थापित किया है।
वह लगातार भाजपा के करीबी माने जाते हैं, लेकिन नीतीश कुमार के साथ उनका रिश्ता उतना सहज नहीं है।

2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में चिराग की रणनीतियों ने कई सीटों पर असर डाला था।
इसी वजह से भाजपा उन्हें हल्के में नहीं ले सकती।


एनडीए पर असर और संभावनाएँ

सीट शेयरिंग की खींचतान ने यह साफ कर दिया है कि एनडीए के भीतर तालमेल आसान नहीं है।
भाजपा और जेडीयू को बराबरी पर चुनाव लड़ना है, लेकिन चिराग पासवान की डिमांड इस संतुलन को बिगाड़ रही है।

अब बड़ा सवाल यह है कि भाजपा और जेडीयू किस तरह से बीच का रास्ता निकालते हैं
यदि समाधान नहीं निकला, तो चुनाव से पहले ही गठबंधन में दरारें गहरी हो सकती हैं।


चुनावी नतीजों पर असर

बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर आधारित रही है।
दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वोट बैंक पर पकड़ बनाने वाला दल ही जीत की ओर बढ़ता है।
चिराग पासवान का दलित वोट बैंक पर असर इस बार भी निर्णायक हो सकता है।

यदि एनडीए उन्हें नजरअंदाज करता है तो विपक्ष इसे भुनाने में देर नहीं करेगा।
और यदि उनकी डिमांड पूरी होती है, तो अन्य सहयोगी दलों की नाराजगी महागठबंधन के लिए अवसर बन सकती है।


निष्कर्ष

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एनडीए के सामने सबसे बड़ी चुनौती सीट शेयरिंग की है।
चिराग पासवान की 40 सीटों की डिमांड ने भाजपा और जेडीयू दोनों को दुविधा में डाल दिया है।
यह मांग न पूरी करना आसान है, न इंकार करना सुरक्षित।

आने वाले दिनों में यह साफ हो जाएगा कि एनडीए इस पेचीदा स्थिति से कैसे बाहर निकलता है।
लेकिन इतना तय है कि इस बार की सीट शेयरिंग केवल संख्याओं का खेल नहीं बल्कि साख और संतुलन का सवाल भी है।
यदि समाधान समय रहते नहीं निकाला गया, तो यह चुनाव एनडीए के लिए उम्मीदों से ज्यादा चुनौतियों वाला साबित हो सकता है।

आपको यह भी पसंद आ सकता है

Loading...

कोई टिप्पणी नहीं:

Blogger द्वारा संचालित.
RRDdailynews Logo
RRD Daily News Usually replies within an hour
Hello, how can we help you? ...
Send