बिहार में मतदाता सूची विवाद: कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश

 

बिहार में SIR विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने वोटर्स को राहत दी

बिहार में चुनावी प्रक्रिया का Special Intensive Revision (SIR) इन दिनों राजनीतिक और न्यायिक हलकों में सबसे चर्चित विषय बना हुआ है। करीब 65 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए जाने के बाद लोकतांत्रिक पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हुए। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए वोटर्स को आधार कार्ड और अन्य 11 दस्तावेजों की मदद से दावा दाखिल करने की सुविधा दी है।

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न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की बेंच ने आदेश दिया कि नागरिक ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से अपने नाम वापस जुड़वाने के लिए दावा दाखिल कर सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि मताधिकार से किसी भी नागरिक को वंचित नहीं किया जाना चाहिए, इसलिए यह प्रक्रिया पूरी तरह से "voter-friendly" होनी चाहिए।

मान्य 11 दस्तावेजों में पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र, मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र, भूमि/घर आवंटन पत्र और सरकारी पहचान पत्र शामिल हैं। इस फैसले ने लोकतंत्र को अधिक सुलभ और पारदर्शी बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है।


हालांकि ECI ने इस प्रक्रिया के लिए 1.68 लाख Booth Level Agents नियुक्त किए थे, लेकिन अब तक केवल दो दावे दाखिल हुए। कोर्ट ने इस स्थिति को "चौंकाने वाला" बताते हुए राजनीतिक दलों की निष्क्रियता की कड़ी आलोचना की।

सुप्रीम कोर्ट ने 12 प्रमुख दलों को निर्देश दिया कि वे अपने एजेंट्स को सक्रिय करें और मतदाताओं को मदद पहुँचाएँ। साथ ही, CEO को दलों को प्रक्रिया में शामिल करने और अगली सुनवाई से पहले प्रगति रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है। अगली सुनवाई 8 सितंबर को होगी।


चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा कि यह संशोधन लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए है। अब तक 85,000 दावे दर्ज हुए हैं और 2 लाख नए मतदाता जुड़े हैं। आयोग ने आश्वासन दिया कि कोई भी मतदाता "सूची से बाहर" नहीं रह जाएगा।

वहीं विपक्षी दलों ने फैसले को लोकतंत्र की रक्षा करार दिया। कांग्रेस ने इसे "brutal assault" से बचाने वाला कदम बताया। CPI(M) ने चेताया कि 65 लाख मतदाताओं के नाम बहाल करना समय की चुनौती है। TMC और अन्य दलों ने इसे विपक्ष की कानूनी जीत बताया।

SIR प्रक्रिया जून से लागू हुई थी, जिसके तहत 65 लाख नाम हटाए गए और मतदाता संख्या घटकर 7.24 करोड़ रह गई। विरोधियों का आरोप है कि अल्पसंख्यक और गरीब वर्ग को निशाना बनाया गया। कोर्ट ने ECI को सूची और हटाने का कारण सार्वजनिक करने का आदेश दिया, जिसके बाद आयोग ने 19 अगस्त तक सूची जारी कर दी।


सुप्रीम कोर्ट का आदेश लोकतंत्र की रक्षा और मताधिकार की गारंटी है। अब वोटर्स ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से अपने अधिकार का दावा कर सकते हैं। राजनीतिक दलों को भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी, ताकि कोई नागरिक लोकतंत्र से बाहर न रह जाए।

👉 यह फैसला न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल है कि कैसे न्यायपालिका लोकतंत्र की सबसे बड़ी संरक्षक बन सकती है।

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