बेलगावी मेडिकल कॉलेज की पीजी छात्रा की आत्महत्या: मानसिक स्वास्थ्य संकट और शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल
कर्नाटक के बेलगावी से आई एक दर्दनाक खबर ने एक बार फिर मेडिकल शिक्षा में बढ़ते मानसिक दबाव और अवसाद की समस्या को उजागर कर दिया है। बेलगावी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (BIMS) की एक पोस्टग्रेजुएट मेडिकल छात्रा अपनी हॉस्टल रूम में मृत पाई गई। प्रारंभिक जांच में इसे आत्महत्या का मामला माना जा रहा है और आशंका है कि छात्रा ने दवा की अधिक मात्रा (Drug Overdose) लेकर अपनी जान दी।
यह घटना केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं बल्कि पूरे देश की मेडिकल शिक्षा व्यवस्था और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमज़ोरियों पर प्रश्नचिह्न लगाती है। इस खबर ने न केवल छात्र समुदाय बल्कि अभिभावकों और नीति निर्माताओं को भी झकझोर दिया है।
घटना का विवरण: 20 अगस्त 2025 की सुबह
कहाँ और कैसे हुई घटना
20 अगस्त 2025 को बेलगावी स्थित BIMS मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में एक पीजी छात्रा अपने कमरे में मृत पाई गई। जब उसके साथी छात्रों ने दरवाजा खटखटाया और कोई जवाब नहीं मिला, तो प्रशासन को सूचना दी गई। दरवाजा तोड़ा गया तो वह अचेत अवस्था में पाई गई।
प्रारंभिक आशंका
डॉक्टरों और पुलिस की प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, छात्रा की मौत संभवतः दवा की अधिक खुराक लेने से हुई है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की प्रतीक्षा है, लेकिन शुरुआती संकेत आत्महत्या की ओर इशारा करते हैं।
छात्रा की मानसिक स्थिति
करीबी दोस्तों और कॉलेज सूत्रों ने बताया कि छात्रा अवसाद (Depression) से जूझ रही थी और वह मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की देखरेख में थी। हाल के दिनों में उसका व्यवहार बदल गया था, लेकिन शायद उसके भीतर की पीड़ा को समझने में सभी नाकाम रहे।
पुलिस जांच और प्रशासनिक कार्रवाई
पुलिस ने छात्रा की मृत्यु को गंभीरता से लिया है और मामला दर्ज कर लिया गया है। अभी तक हत्या या किसी बाहरी साजिश के सबूत नहीं मिले हैं।
कॉलेज प्रशासन ने छात्रा के परिवार को सूचना दी और छात्रावास में सुरक्षा व काउंसलिंग की व्यवस्था पर पुनर्विचार करने का आश्वासन दिया।
मेडिकल शिक्षा में मानसिक स्वास्थ्य संकट
भारत में आत्महत्या के आंकड़े
भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां युवा आत्महत्याओं की दर सबसे अधिक है। 15 से 29 वर्ष की आयु वर्ग में आत्महत्या के मामले विशेष रूप से चिंताजनक हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि हर साल हजारों छात्र तनाव और अवसाद के कारण अपनी जान ले लेते हैं।
मेडिकल छात्रों पर खास दबाव
एक रिसर्च (2009 से 2018) के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में 196 मेडिकल छात्रों की आत्महत्या दर्ज की गई है। इनमें से अधिकांश पोस्टग्रेजुएट छात्र थे।
इनके पीछे प्रमुख कारण बताए गए:
-
अत्यधिक अकादमिक दबाव
-
लंबी पढ़ाई और थकाऊ ट्रेनिंग
-
नींद की कमी और अनियमित शेड्यूल
-
परीक्षाओं का डर
-
वरिष्ठों और फैकल्टी का दबाव
-
मनोवैज्ञानिक समर्थन की कमी
हाल के वर्षों में ऐसी घटनाओं की श्रृंखला
गोरखपुर (BRD मेडिकल कॉलेज)
कुछ समय पहले गोरखपुर के BRD मेडिकल कॉलेज में एक PG छात्र डॉ. अभिषो डेविड अपने हॉस्टल कमरे में मृत पाए गए। जांच में ड्रग ओवरडोज़ की संभावना जताई गई।
पटना (AIIMS-पटना)
AIIMS-पटना में एक प्रथम वर्ष MD छात्र ने आत्महत्या की थी। मामले की जांच अभी जारी है और यह भी अकादमिक दबाव से जुड़ा माना गया।
जोधपुर (SN मेडिकल कॉलेज)
जोधपुर में 30 वर्षीय डॉ. राकेश विष्णोई ने कथित रूप से आत्महत्या की कोशिश की थी और बाद में अस्पताल में उनका निधन हो गया। रिपोर्ट्स के अनुसार वे गंभीर मानसिक तनाव से गुजर रहे थे।
ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि यह समस्या केवल एक संस्थान तक सीमित नहीं बल्कि पूरे भारत की मेडिकल शिक्षा व्यवस्था में गहराई से जड़ें जमाए हुए है।
छात्रों की चुनौतियाँ: क्यों बढ़ रहा है मानसिक दबाव?
-
पढ़ाई का अत्यधिक बोझ
मेडिकल शिक्षा दुनिया की सबसे कठिन शिक्षा प्रणालियों में से एक मानी जाती है। सालों तक चलने वाले कोर्स, इंटर्नशिप और लगातार परीक्षाएँ छात्रों पर मानसिक दबाव डालती हैं। -
सामाजिक और पारिवारिक अपेक्षाएँ
कई छात्र ऐसे परिवारों से आते हैं जहां उनसे डॉक्टर बनने की उम्मीद होती है। असफलता का डर उन्हें और गहरे अवसाद में धकेल देता है। -
वरिष्ठों का दबाव और रैगिंग
कई बार PG छात्र जूनियर और सीनियर्स के बीच असमान व्यवहार, अनुचित दबाव और मानसिक शोषण का शिकार होते हैं। -
काउंसलिंग सेवाओं की कमी
कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान बेहद कम दिया जाता है। अधिकांश संस्थानों में पेशेवर मनोवैज्ञानिक काउंसलर की कमी है। -
नींद और जीवनशैली की समस्या
ड्यूटी और पढ़ाई के लंबे घंटों के कारण मेडिकल छात्रों को नींद की कमी रहती है, जो मानसिक असंतुलन का कारण बन सकती है।
सरकार और संस्थानों की जिम्मेदारी
इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए केवल शोक प्रकट करना पर्याप्त नहीं है। सरकार और मेडिकल संस्थानों को ठोस कदम उठाने होंगे, जैसे:
-
मेडिकल कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य सेल का गठन
-
24x7 काउंसलिंग हेल्पलाइन
-
छात्र-शिक्षक संवाद को बढ़ावा देना
-
अत्यधिक दबाव कम करने के लिए अकादमिक सुधार
-
परीक्षाओं और मूल्यांकन की पारदर्शी प्रणाली
-
सपोर्ट ग्रुप और मेंटरशिप प्रोग्राम
बेलगावी मेडिकल कॉलेज की पीजी छात्रा की आत्महत्या केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि यह पूरे देश की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए एक चेतावनी है।
युवा डॉक्टर, जो भविष्य में देश की स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ बनते हैं, अगर मानसिक दबाव और अवसाद के कारण अपनी जान देने पर मजबूर हो जाएँ तो यह समाज और प्रणाली दोनों की असफलता है।
सरकार, मेडिकल संस्थान और समाज—सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि छात्रों को केवल अकादमिक रूप से नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी समर्थन मिले। अब समय है कि मानसिक स्वास्थ्य को शिक्षा व्यवस्था के केंद्र में रखा जाए।
कोई टिप्पणी नहीं: